रायपुर AIIMS में नार्को टेस्ट की सुविधा शुरू: जानिए क्या होता है नार्को, कब-कब पड़ी जरूरत..
Last Updated on 4 months by City Hot News | Published: August 8, 2024
रायपुर// छत्तीसगढ़ में पहली बार रायपुर AIIMS में नार्को टेस्ट की सुविधा शुरू हुई है। इसके जरिए अब गंभीर आपराधिक मामलों की जांच में आसानी होगी। इसकी रिपोर्ट भी महज 3 दिन में ही मिल जाएगी। इससे पहले पुलिस को मुंबई, हैदराबाद या बेंगलुरु जाना पड़ता था।
दरअसल, रायपुर AIIMS में 27 जुलाई को नार्को एनालिसिस टेस्ट का सफल परीक्षण किया गया। यह टेस्ट फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में एनेस्थीसिया विभाग, जनरल मेडिसिन और इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के सहयोग से पूरा हुआ। इसके लिए अक्टूबर 2023 में AIIMS और फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी की ओर से समझौता हुआ था।
छत्तीसगढ़ में बढ़ते अपराध को देखते हुए यहां नार्को टेस्ट की सुविधा शुरू की गई है।
गुमशुदगी केस में हुआ AIIMS में ट्रायल
दरअसल, रायगढ़ जिले के पूंजीपथरा थाने में एक गुमशुदगी का केस दर्ज है। पुलिस ने सीडीआर के आधार पर संदिग्ध को पकड़ा है। कोर्ट ने संदिग्ध आरोपी का नार्को टेस्ट कराने की अनुमति दी थी। इससे पहले आरोपी का फिजियोलॉजिकल टेस्ट किया गया था।
मेडिकल फिटनेस की प्रक्रिया पूरी करने के बाद पुलिस ने उसके नार्को टेस्ट की प्रक्रिया AIIMS रायपुर में पूरी कराई। टेस्ट में क्या निकला, अभी यह नहीं बताया गया है, लेकिन उसकी रिपोर्ट संबंधित थाने को भेज दी गई है। इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
गंभीर आपराधिक वारदातों को सुलझाने में नार्को टेस्ट का किया जाता है इस्तेम
केस-1: डॉक्टर दंपती की मिली थी सड़ी-गली लाश
करीब 7 साल पहले 6 अप्रैल 2017 में कवर्धा में दंपती डॉ. जीके सूर्यवंशी और डॉ. उषा सूर्यवंशी का शव मिला था। दोनों के शव उनके घर के आंगन में 3 दिनों से पड़े थे। पति-पत्नी दोनों करीब 11 साल से जिला अस्पताल में काम कर रहे थे। शुरुआती जांच में पुलिस ने दावा किया कि डॉ. ने अपनी पत्नी की हत्या के बाद सुसाइड किया है।
दोनों लाशें डिकंपोज्ड हो गई थीं और उनमें से बदबू आ रही थी। डॉ. उषा के सिर पर चोट के निशान थे। फर्श पर खून भी बहा था। इसके ठीक बगल में डॉ. सूर्यवंशी का शव पड़ा था। जबकि घर के दरवाजे खुले हुए थे। ऐसे में किसी तीसरे व्यक्ति के भी शामिल होने की आशंका थी।
वारदात के 3 साल बाद संदिग्ध आरोपियों के नार्को टेस्ट के लिए अपील की गई। हालांकि कोविड का दौर आया और मामला 2 साल और टल गया। इसके बाद फिर से नार्को टेस्ट की अनुमति मिली और पुलिस ने संदिग्धों की जांच कराई।
केस-2 : एएनएम के पति और 2 बच्चों की हुई थी हत्या
साढ़े 5 साल पहले 30 मई 2018 को महासमुंद के पिथौरा में किशनपुर उप स्वास्थ्य की एएनएम योगमाया, उसके पति और 9 व 9 साल के दो बच्चों की हत्या कर दी गई थी। परिजनों के दबाव में मामला CBI को सौंप दिया गया। पुलिस ने एक आरोपी धर्मेंद्र को गिरफ्तार किया था।
CBI ने उसका नार्को टेस्ट कराया। टेस्ट में खुलासा हुआ कि, इस हत्याकांड में उसके साथ पांच और आरोपी फूल सिंह यादव, गौरी शंकर केवट, सुरेश खूंटे और अखंडल प्रधान शामिल थे। एडीजे कोर्ट ने करीब 8 माह पहले सभी आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
महासमुंद में चारों के शव उनके ही घर में बरामद हुए थे। एएनएम योगमाया अपने परिवार के साथ स्वास्थ्य केंद्र परिसर में ही रहती थी।
अब जानिए क्या है नार्को टेस्ट, जो लाता है सच सामने
शातिर क्रिमिनल खुद को बचाने के लिए अक्सर झूठी कहानी बनाता है। पुलिस को गुमराह करते हैं। इनसे सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता है। नार्को टेस्ट में साइकोएस्टिव दवाई दी जाती है। जिसे ट्रुथ ड्रग भी कहते हैं। जैसे- सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल।
सोडियम पेंटोथल कम समय में तेजी से काम करने वाला एनेस्थेटिक ड्रग है। इसका इस्तेमाल सर्जरी के दौरान बेहोश करने में सबसे ज्यादा होता है। ये केमिकल जैसे ही नसों में उतरता है, शख्स बेहोशी में चला जाता है। बेहोशी से उठने के बाद भी आरोपी को पूरा होश नहीं रहता।
दावा है कि, इस हालत में आरोपी जानबूझकर कहानी नहीं गढ़ सकता, इसलिए सच बोलता है। नार्को टेस्ट में जो ड्रग दिया जाता है, वो बेहद खतरनाक होता है। जरा सी चूक से मौत भी हो सकती है या आरोपी कोमा में भी जा सकता है। यही वजह है कि नार्को टेस्ट से पहले आरोपी की मेडिकल जांच की जाती है।
इनका नहीं होता नार्को टेस्ट
अगर आरोपी को मनोवैज्ञानिक, आर्गन से जुड़ी या कैंसर जैसी कोई बड़ी बीमारी है, तो उसका नार्को टेस्ट नहीं किया जाता। नार्को टेस्ट अस्पताल में इसलिए कराया जाता है, ताकि कुछ गड़बड़ होने पर इमरजेंसी की स्थिति में तत्काल इलाज किया जा सके। व्यक्ति की सेहत, उम्र और जेंडर के हिसाब से नार्को टेस्ट की दवाइयां दी जाती है।
नार्को टेस्ट व्यक्ति को सम्मोहन की स्थिति में ले जाता है और व्यक्ति जानकारी देने से पहले सोचने-समझने की स्थिति में नहीं रहता है।
कोर्ट में नार्को टेस्ट की लीगल वैलिडिटी क्यों नहीं है?
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, दवा के इस्तेमाल के बाद इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कोई आरोपी सिर्फ सच ही बोले। एनेस्थीसिया की स्थिति में कोई शख्स अपनी इच्छा से स्टेटमेंट नहीं देता है। इस समय वह अपने होशो-हवास में भी नहीं होता है।
इसीलिए कोर्ट में कानूनी तौर पर साक्ष्य के लिए नार्को टेस्ट रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया जाता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि, नार्को टेस्ट रिपोर्ट की मदद से बाद में खोजी गई किसी भी जानकारी को सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश किए जाने की अनुमति होगी।