जमानतीय केस में महिला को भेजा जेल:25 हजार क्षतिपूर्ति देने हाईकोर्ट का आदेश; बेल खारिज करने पर महिला ने हाईकोर्ट में लगाई थी याचिका
Last Updated on 9 months by City Hot News | Published: February 24, 2024
बिलासपुर// जमानतीय केस में महिला को जेल भेजने के मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट ने 25 हजार रुपए क्षतिपूर्ति देने का आदेश सुनाया है। एक जमानतीय केस (bailable case) में मजिस्ट्रेट ने महिला के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था।
महिला को वारंट की तामील ही नहीं हो पाई थी। इसके बाद वारंट की जानकारी होने पर उसने कोर्ट में समर्पण कर दिया, लेकिन मजिस्ट्रेट ने उसकी बेल खारिज करते हुए उसे जेल भेजने का आदेश जारी कर दिया। इस केस को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने महिला को 25 हजार रुपए क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया है।
ये है पूरा मामला
जानकारी के मुताबिक, जांजगीर जिले के नवागढ़ की रहने वाली 73 वर्षीय महिला को साल 2021 में शिवरीनारायण के आबकारी इंस्पेक्टर ने 3 लीटर देशी शराब के साथ पकड़ा था। उसके खिलाफ आबकारी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। जमानतीय धाराओं के तहत कार्रवाई होने पर उसे मुचलके पर छोड़ दिया गया था।
महिला को जानकारी नहीं और जारी हो गया गिरफ्तारी वारंट
इसके बाद 14 मार्च 2021 को आबकारी पुलिस ने महिला को बिना जानकारी दिए जांजगीर न्यायालय में चालान पेश कर दिया। इस दौरान महिला की उपस्थिति के लिए कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था, जिसकी तामिली भी नहीं कराई गई और इसकी सूचना भी नहीं दी गई।
इस बीच 10 मई 2023 को महिला को एडवोकेट के माध्यम से पता चला कि कोर्ट ने उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। इसके बाद महिला 7 दिसंबर को कोर्ट में उपस्थित हुई और जमानत आवेदन प्रस्तुत किया, लेकिन मजिस्ट्रेट ने उसे जेल भेज दिया और 7 दिन बाद सत्र न्यायालय से उसकी जमानत हुई।
मजिस्ट्रेट के आदेश को दी गई चुनौती
मजिस्ट्रेट के इस आदेश और अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ महिला ने अपने एडवोकेट गौरव सिंघल के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसमें मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी गई। साथ ही याचिकाकर्ता ने न्याय की गुहार लगाते हुए उचित कार्रवाई और क्षतिपूर्ति देने की मांग की।
इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता के एडवोकेट ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकारों का हनन हुआ है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के तर्कों से सहमत होकर मूल अधिकारों का हनन मानते हुए मजिस्ट्रेट के इस आदेश को गलत ठहराया है। हाईकोर्ट ने महिला को 30 दिन के भीतर 25 हजार रुपए क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया है।