Saptah Ke Vrat Tyohar: गंगा दशहरा से लेकर निर्जला एकादशी व्रत और ज्येष्ठ पूर्णिमा, जानें इस हफ्ते के व्रत त्योहार…
Last Updated on 1 year by City Hot News | Published: May 29, 2023
Weekly Vrat Tyohar 29 May to 4 June: जून के पहले सप्ताह की शुरुआत ही ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के साथ हो रही है। इसके साथ ही इस सप्ताह गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी व्रत, प्रदोष व्रत और ज्येष्ठ पूर्णिमा जैसे कई प्रमुख व्रत त्योहार पड़ने वाले हैं। आइए जानते हैं इस सप्ताह के प्रमुख व्रत त्योहार के बारे में…
Saptah Ke Vrat Tyohar, 29 May to 4 June: वर्तमान सप्ताह का शुभारंभ ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि और उत्तरा नक्षत्र के साथ हो रहा है। वर्तमान शुक्ल पक्ष 4 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा वाले दिन समाप्त हो जाएगा और उससे अगले दिन यानी 5 जून सोमवार से आषाढ़ मास का कृष्ण पक्ष आरंभ हो जाएगा। इस सप्ताह गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी व्रत, प्रदोष व्रत, वट पूर्णिमा आदि का आयोजन किया जाएगा।– डॉ. अश्विनी शास्त्री
गंगा दशहरा (30 मई, मंगलवार)
हमारे प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन ही पुण्यतोया मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाना शुरू हुआ। स्कंद पुराण में गंगा के अवतरण की चर्चा करते हुए कहा गया है कि
ज्येष्ठे मासे सिते पक्षे, दशम्यां बुधस्तयो:।
व्यतीपादे गरानंदे, कन्याचंद्रे वृषे रवौ।
हरते दश पापानि, तस्माद्दशहरा स्मृता।।
अर्थात इस दिन ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुध दिन, हस्त नक्षत्र, व्यतीपाद, गर और आनंद योग, कन्या राशि में चंद्रमा और वृष राशि में सूर्य होता है इसलिए इसे गंगा दशहरा कहा जाता है। ऐसा भी कहा गया है कि इस दिन मां गंगा का व्रत, गंगा स्नान और गंगा का विधिपूर्वक पूजन करने से उपासक को तीन प्रकार के शारीरिक (चोरी, हत्या और पर स्त्रीगमन), चार प्रकार के वाचिक (किसी को अपमानित करना, किसी की निंदा करना, बिना किसी प्रयोजन के बोलना और सत्य संभाषण) और तीन प्रकार के मानसिक (दूसरे के धन की अभिलाषा करना, दूसरों का अनिष्ट सोचना और दुराग्रह)- इन दस पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन गंगा में स्नान करने वाले को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है, ऐसा भी पुराणों में कहा गया है। अगर किन्हीं कारणों से गंगा नदी तक पहुंचना संभव न हो, तो उपासक को अपने पास में ही किसी भी नदी या तालाब में स्नान करके तिलों का अर्पण करना चाहिए।
गंगा पूजन विधि
इस दिन गंगा नदी में स्नान करके पुष्प और अर्घ्य देते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-
ओम नमो भगवत्यै, दशपापहरायै गंगायै, कृष्णायै, विष्णुरूपिण्यै, नन्दिन्यै नमोनम:।।
इसके अतिरिक्त गंगा नदी से दूर रहने वाले उपासक को मां गंगा की मूर्ति का अक्षत, पुष्प, धूप आदि से विधि विधानपूर्वक पूजन करना चाहिए। इसके बाद ‘ओम नमो भगवति, ऐं ह्रीं श्रीं (वाक्-काम-मायामयि) हिलि हिलि, मिलि मिलि, गंगे मां पावय पावय’, इस मंत्र से पांच बार गंगा का पूजन करें। पूजन के बाद अगर संभव हो तो दस फल, दस दीपक और तिलों का दान करें।
निर्जला एकादशी व्रत (31 मई, बुधवार)
हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, लेकिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सर्वश्रेष्ठ एकादशी माना जाता है, क्योंकि इस दिन घड़े और पंखों के दान का विशेष महत्व है, इसलिए इसे घड़े पंखों की एकादशी भी कहा जाता है। पुराणों में कहा गया है कि इस दिन व्रत रखने वाले को सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य और चौदह एकादशियों के व्रत का पुण्य और फल प्राप्त होता है। इसके विषय में यह भी कहा जाता है कि जो फल सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में ब्रह्म सरोवर में डुबकी लगाने से मिलता है, वही फल इस एकादशी का व्रत रखने से मिलता है। महाभारत काल में पांडुपुत्र भीम को भूख बहुत लगती थी, वह एकादशी का व्रत नहीं रख पाता था, जबकि बाकी चारों पांडव व्रत रखते थे। पर महर्षि व्यास के कहने से उसने बड़ी मुश्किल से यह व्रत रखा इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत विधि
इस दिन ब्रह्म वेला में उठकर स्नानादि करके श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान् विष्णु का पूजन, अर्चन करना चाहिए। व्रती को अगले दिन सूर्योदय होने तक अन्न और जल का त्याग करते हुए नारायण का ध्यान करना चाहिए और दिन में विष्णु सहस्रनाम का 11 बार पाठ करना चाहिए। द्वादशी वाले दिन फिर से नारायण का पूजन और अर्चन करके पीपल के वृक्ष के नीचे जाकर धूप आदि से पूजन करें और 11 बार परिक्रमा करें। घड़े, पंखों आदि का दान कर भोजन करें।
प्रदोष व्रत (1 जून, बृहस्पतिवार)
जिस तरह प्रत्येक माह के दोनों पक्षों में एक एक बार एकादशी का व्रत होता है, ठीक उसी प्रकार त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखा जाता है। यह व्रत भगवान शंकर को। यह व्रत शाम के समय रखा जाता है इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस सप्ताह बृहस्पतिवार होने से इस बार गुरु प्रदोष व्रत रखा जाएगा। वैसे मुख्यरूप से शिवजी की कृपा प्राप्त करने और पुत्र प्राप्ति की कामना से इस व्रत को किया जाता है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर सबसे पहले ‘अद्य अहं महादेवस्य कृपाप्राप्त्यै सोमप्रदोषव्रतं करिष्ये’ यह कहकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और फिर शिवजी की पूजा करके उपवास रखना चाहिए। शाम के स्नान करके महादेव की अर्चना करके अन्न ग्रहण करना चाहिए।
ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा (3 जून, शनिवार)
पूर्णिमा और अमावस्या को प्राचीन हिंदू चिंतन परम्परा में बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। दरअसल इन दोनों तिथियों का सीधा संबंध चंद्रमा से है और चंद्रमा का संबंध हमारे मन से है। चंद्रमा की स्थिति हमारे मन को प्रभावित करती है। अमावस्या तिथि को यदि पितरों के लिए पिंड दान आदि की दृष्टि से महत्वपूर्ण है तो पूर्णिमा को पुण्यसलिला नदियों में स्नान और दान आदि से जोड़ा जाता है। पूर्णिमा एक मात्र ऐसी तिथि है जिस दिन कोई न कोई हिंदू पर्व अवश्य होता है। जैसे चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जन्मोत्सव तो वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध जयंती होती है। आषाणी पूर्णिमा वाले दिन गुरु पूर्णिमा होती है तो श्रावण पूर्णिमा वाले दिन रक्षा बंधन होता है। माना जाता है कि पूर्णिमा वाले दिन पीपल के वृक्ष पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। इसलिए इस दिन पीपल के वृक्ष पर कुछ मीठा आदि रखकर धूप बत्ती आदि से पूजन करें तो लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।