रायपुर : इंडोनेशिया के बाली द्वीप से आये कलाकारों ने कहा कि श्री राम की भूमि में आकर धन्य हुए, जिनकी कथा हम दुनिया भर में सुनाते हैं…

Last Updated on 1 year by City Hot News | Published: June 2, 2023

  • बाली द्वीप में भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव: रामकथा के परिधान जगह जगह तैयार होते हैं
  • यूरोपियन यूनियन, अमेरिका सहित अनेक देशों में देते हैं प्रस्तुति
  • पहली बार उस धरती पर आए, जहां से रामकथा सृजित हुई, छत्तीसगढ़ वही धरती जहां अरण्य कांड रचा गया

रायपुर(CITY HOT NEWS)//

बाली से आये कलाकारों ने अपने द्वीप में भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव पर बताया

भारत से लगभग साढ़े आठ हजार किलोमीटर की दूरी पर बसे इंडोनेशिया के बाली द्वीप में भी किसी लड़की का नाम पद्मा हो सकता है या फिर श्रीयानी हो सकता है यह सोचना भी चकित कर देता है लेकिन बाली द्वीप में ऐसा हो सकता है। 2000 बरस पहले यहां भारतीय उपमहाद्वीप का सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा और बाली ने भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को अपना लिया। वाल्मीकि की रामायण कथा बाली द्वीप में आज भी उसी तरह से सुनी सुनाई जाती है, स्थानीय संस्कृति के अनुरूप इसका सुंदर मंचन किया जाता है। राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के मौके पर बाली से आए दल की सदस्य ने बताया कि मेरा नाम पद्मा है। हमारे यहां बिल्कुल वैसे ही पूजा होती है जैसे भारत में होती है। हमारे यहां भी लोग मंदिर जाते हैं और हम सब भगवान राम के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं। बाली से ही आई श्रीयानी ने बताया कि लक्ष्मी जो विष्णु जी की पत्नी हैं, उनकी विशेष पूजा बाली द्वीप में होती है, इसी वजह से बहुत सारी लड़कियों के नाम श्री से हैं जैसे श्रीयानी या पदमा।
श्रीयानी ने बताया कि उनके दल द्वारा मंचित की गई राम कथा केवल इंडोनेशिया में ही नहीं सुनाई जाती, इसका मंचन आसपास के देशों जैसे सिंगापुर आदि में भी होता है। यही नहीं वह यूरोपियन यूनियन तथा अमेरिका में भी अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं। श्रीयानी ने बताया कि जब उनका दल राम कथा सुनाता है, तब उनकी कलात्मक प्रस्तुति और उनका वस्त्र विन्यास लोगों को बहुत भाता है। इसके अलावा श्रीराम का अद्भुत चरित्र सब को बहुत पसंद आता है। श्रीयानी ने बताया कि उन्हें रामकथा इसलिए अच्छी लगती है क्योंकि श्रीराम हमेशा अपनी पत्नी सीता का ध्यान रखते हैं। जब उनका अपहरण होता है तब वह उन्हें वापस लाने लंका तक चले जाते हैं, लंका में पुल का निर्माण करते हैं। इस तरह से जब भावपूर्ण कथा की प्रस्तुति होती है, तो लोगों के लिए अद्भुत दृश्य बनता है।
श्रीयानी से जब उनके परिधानों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बाली में रामकथा से जुड़ी हुई सामग्री बनाने का कुटीर उद्योग है, यहां न केवल कलाकारों के लिए मुकुट तैयार होते हैं अपितु यहां पर उनके लिए सुंदर वस्त्र भी तैयार होते हैं।
श्रीयानी ने वस्त्र दिखाते हुए कहा कि देख लीजिये, सालों से इसी तरह के वस्त्र रामकथा में पहने जा रहे हैं और इन वस्त्रों की विशेषता यह है कि ऐसे ही परिधान हमारे मंदिरों में भी देवताओं ने धारण किए हैं। अपने मुकुट की तरफ इशारा करते हुए श्रीयानी ने बताया कि इसे देखिए, यह वैसा ही है जैसे बाली के मंदिरों में बनी मूर्तियों में दिखता है। फिर उन्होंने बताया कि यह मुकुट दुकानों में बिकते हैं। फूलों की ओर इशारा करते हुए मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि बस यह फूल ही हैं, जिन्हें हम चुनकर अपने मुकुट में लगाते हैं हमारा इतना ही काम है और फिर उसके बाद अपनी अपनी प्रस्तुति में लग जाते हैं।
श्रीयानी ने बताया कि वह पहली बार भारत आई हैं। यहां आकर बहुत अच्छा लगा। यह श्रीराम का देश है। मुझे बताया गया कि रामकथा में वर्णित अरण्यकांड का स्थल दंडकारण्य ही है। यह छत्तीसगढ़ ही है, जहां मैं आई हूँ। यह सोचकर ही मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, हम सब छत्तीसगढ़ में आकर और यहां हुए भव्य स्वागत से अभिभूत हैं। खास बात है कि बाली से आई श्रीयानी ने महिला होते हुए भी श्री राम का किरदार निभाया। श्रीयानी ने इंडोनेशिया की रामकथा की बारीकी बताई। यह बैले जैसा है। इस राम कथा में वाद्य यंत्रों की खास भूमिका है। उन्होंने बताया कि इसमें सबसे खास इंस्ट्रूमेंट ड्रम है। ड्रम की ताल बदलती है और कलाकारों की थिरकन बदलती है।