Sawan Somwar 2023 Date: 59 दिनों का अबकी बार होगा सावन, लगेंगे पूरे 8 सोमवार जानें क्या है इसका धार्मिक आध्यात्मिक महत्व…astro,
Last Updated on 2 years by City Hot News | Published: May 8, 2023
Sawan Somwar 2023 Date and Time: सावन 2023 बहुत ही खास होने जा रहा है। क्योंकि इस साल शिवजी ने भक्तों को अपनी भक्ति के लिए उत्तम अवसर प्रदान किया है। यह संयोग बना है सावन मास में मलमास लगने की वजह से। यही कारण है कि इस बार सावन 30 नहीं, बल्कि 59 दिनों का पड़ रहा है। कह सकते हैं कि इस साल दो सावन मास पड़ रहे हैं। आइए, जानते हैं कि,सावन में मलमास लगने का क्या धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व।
Sawan Somwar 2023: भगवान भोलेनाथ को प्रिय महीना सावन इस बार 59 दिनों का होगा। चौंकिए मत, यह सच है। इस बार भक्तों को सावन के कुल 8 सोमवार को भगवान शिव का व्रत कर उनका जलाभिषेक करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। इसका कारण है नया विक्रम संवत 2080 ‘नल’, जो 12 की जगह 13 महीने का होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि नूतन हिंदू नव वर्ष में मलमास है। प्रत्येक तीसरे वर्ष ऐसी स्थिति बनती है, जब संवत में 12 की जगह 13 महीने होते हैं।
कब शुरू हो रहा सावन?
पंडित संतोष पांडेय शास्त्री के अनुसार, सावन का महीना इस साल चार जुलाई से शुरू हो रहा है। यह 31 अगस्त तक चलेगा। इस तरह इस बार सावन 59 दिनों का होगा। 18 जुलाई से 16 अगस्त तक सावन अधिकमास रहेगा। इसे मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। शास्त्रीजी इसे और स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि वैदिक पंचांग की गणना सौरमास और चंद्रमास के आधार पर होती है। एक चंद्रमास 354 दिनों का, जबकि एक सौरमास 365 दिनों का होता है। इस तरह इन दोनों में 11 दिन का अंतर आ जाता है और तीसरे वर्ष 33 दिनों का अतिरिक्त एक महीना बन जाता है। वर्ष में इन 33 दिनों के समायोजन को ही अधिकमास कहा जाता है। 2023 में अधिकमास के दिनों का समायोजन सावन के महीने में हो रहा है। इस कारण सावन दो महीने का हो रहा है। यही कारण है कि इस बार सावन में आठ सोमवार पड़ रहे हैं, जबकि अन्य साल सावन मास में 4 या अधिकतम 5 सोमवार होते हैं। यही नहीं, इस साल रक्षाबंधन भी 31 अगस्त को पड़ रहा है, जबकि सामान्य तौर पर यह 10 से 15 अगस्त के बीच पड़ता है।
5 महीने का होगा चातुर्मास?
सनातन धर्म में व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को ‘चातुर्मास’ के नाम से जाना जाता है। ख़ासकर ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये चार महीने बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। चातुर्मास की अवधि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक होती है। चातुर्मास में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास पड़ते हैं। चातुर्मास के प्रारंभ को ही ‘देवशयनी एकादशी’ कहा जाता है, वहीं अंत को ‘देवोत्थान एकादशी’। चातुर्मास में पड़ने वाला सावन इस बार 59 दिनों का है, इसलिए चातुर्मास भी पांच महीने का होगा। इसका मतलब है कि भगवान विष्णु पांच महीने तक योगनिद्रा में रहेंगे। शास्त्रीजी के अनुसार, चातुर्मास में गृह प्रवेश, मुंडन, विवाह, जनेऊ संस्कार आदि मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, जो इस साल 5 महीने तक नहीं होंगे।
शिवजी सावन में ससुराल आते हैं
भगवान शिव को सावन मास प्रिय होने के कारण कई कारण हैं। ऋषि मार्कण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन मास में ही घोर तप कर शिवजी की कृपा प्राप्त की थी। इससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे और अल्पायु मार्कण्डेय चिरंजीवी हो गए। यही नहीं, वह सावन का ही महीना था, जब भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य व जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। कई शहरों में शिव बारात शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। इसके अलावा, समुद्र मंथन भी सावन मास में ही किया गया था। इससे जो हलाहल विष निकला था, उसे भगवान शंकर ने अपने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की थी। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया। इसलिए भी जलाभिषेक का ख़ास महत्व है। इस बार सावन के दिन बढ़ना शिव भक्तों पर प्रभु की कृपा है।
बन रहे कई शुभ संयोग
शास्त्रीजी कहते हैं, इस बार के सावन का महत्व कहीं अधिक है। इसका कारण है कि एक तो सावन का महीना 59 दिनों का हो रहा है। दूसरा, सावन मास मणिकांचन योग में होगा। मलमास में सावन का पड़ना दुर्लभ संयोग है। मलमास में ही रक्षाबंधन और मधुश्रावणी पर्व भी हैं।
10 जुलाई को पहला सोमवार
यूं तो पूरा सावन मास ही भगवान भोले को अत्यंत प्रिय है, किंतु इसमें भी सोमवार के दिन की गई पूजा से वह तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। यही कारण है कि सावन के सोमवार पर मंदिरों में भक्तों की अधिक भीड़ होती है। सावन 4 जुलाई से शुरू हो रहा है। इसी दिन भक्त कांवड़ यात्रा के लिए निकलेंगे। हालांकि सावन की पहला सोमवार 10 जनवरी को, जबकि अंतिम 28 अगस्त को पड़ रहा है, जब कांवड़ियों के साथ ही मंदिरों में आम श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ होती है।