Shani Jayanti 2023 Date: शनि जयंती कब है, जानें तिथि, महूर्त और महत्व…
Last Updated on 2 years by City Hot News | Published: May 6, 2023
Shani Jayanti Kab Hai: ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि जयंति का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 19 मई 2023 दिन शुक्रवार को है। शनि जयंती के दिन शनिदेव की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए जानते हैं शनि जयंती का महत्व, पूजा विधि, पूजा मंत्र, पूजा मुहूर्त….
हाइलाइट्स
- शनि जयंती 19 मई 2023 दिन शुक्रवार
- शनि जयंती का महत्व
- शनि जयंती पूजा विधि
- शनि जयंती पूजा मुहूर्त, मंत्र
- शनि जयंती पूजा विधि
Shani Jayanti 2023: 19 मई दिन शुक्रवार को शनि जयंती का पर्व मनाया जाएगा। हर वर्ष शनि जयंती ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर सूर्यदेव और देवी छाया के पुत्र शनिदेव का जन्म हुआ था। शनिदेव न्याय के देवता हैं और कर्म फल प्रदान करने वाले कर्म कारक के ग्रह हैं। इस दिन दिन शनिदेव की विधिवत पूजा अर्चना करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि की महादशा के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलती है। इस तिथि पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जिससे शनि जयंती का महत्व और भी बढ़ गया है। आइए जानते हैं इस तिथि के महत्व और मुहूर्त के बारे में…
शनि जयंती का महत्व (Importance of Shani Jayanti)
शनिदेव को न्याय और कर्म प्रधान का देवता माना गया है और सभी नवग्रहों में उनका प्रमुख स्थान है। साथ ही सभी ग्रहों में शनिदेव सबसे धीमी चाल से चलने वाले ग्रह हैं इसलिए एक राशि में शनिदेव ढाई साल तक रहते हैं। शनिदेव हर किसी को उसके कर्म के हिसाब से फल देते हैं। जिसके कर्म अच्छे होते हैं, उनको अच्छे फल प्राप्त होते हैं और जिनके कर्म बुरे होते हैं, उन पर शनिदेव की साढ़ेसाती, ढैय्या और महदशा लगती है। जिन जातकों पर शनिदोष, साढ़ेसाती या ढैय्या का दोष है तो शनि जयंती के दिन विधिवत रूप से शनि देव की पूजा करना काफी फायदेमंद माना गया है। शनिदेव की कृपा से जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है और धन धान्य में अच्छी वृद्धि होती है।
शनि जयंती पूजा मुहूर्त (Shani Jayanti Puja Muhurta)
शनि जयंती 19 मई 2023 दिन शुक्रवार को है
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि प्रारंभ – 18 मई, शाम 9 बजकर 42 मिनट से
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि समाप्त – 19 मई, रात 9 बजकर 22 मिनट तक
उदाया तिथि होने के कारण 19 मई दिन शुक्रवार को ही शनि जयंती मनाना शास्त्र संगत रहेगा।
शनिदेव मंत्र (Shani Dev Mantra)
शनि बीज मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नम:
शनि का वेदोक्त मंत्र
ॐ शमाग्निभि: करच्छन्न: स्तपंत सूर्य शंवातोवा त्वरपा अपास्निधा:
श्रीशनि व्यासविरचित मंत्र
ॐ नीलांजन समाभासम्। रविपुत्रम यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्डसंभूतम। तम् नमामि शनैश्चरम्।।
शनि जयंती पूजा विधि (Shani Jayanti Puja Vidhi)
शनि जयंती के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। घर पर पूजा करना चाहते हैं तो साफ कपड़े पहनकर चौकी पर काले रंग का कपड़े बिछाकर शनिदेव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके घी या तेल का दीपक जलाएं और पंचामृत से अभिषेक करें। इसके बाद थोड़ा इत्र अर्पित करें और फिर सिंदूर, अक्षत, फल, नीले फूल आदि पूजा की चीजें अर्पित करें। साथ ही शनिदेव को तेल से बनी मिठाई या इमरती अर्पित करें। फिर विधिवत रूप से पूजा अर्चना करने के लिए शनि स्तोत्र, शनि चालीसा आदि का पाठ करें। इसके बाद दान अवश्य करें क्योंकि शनिदेव गरीब व जरूरतमंद लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए इन लोगों का कभी अनादर नहीं करना चाहिए और इन लोगों में दान करना चाहिए।
मंदिर में कर रहे हों पूजा
अगर आप पूजा मंदिर में कर रहे हैं तो वहां सरसों के तेल से अभिषेक करें और काले तिल, लोहे की वस्तु, काली उड़द दाल आदि शनि संबंधित चीजें शनिदेव को अर्पित करें। फिर सिंदूर, रोली, अक्षत, फल, फूल आदि चीजें अर्पित करें। शनिदेव की पूजा के बाद भगवान शिव और हनुमानजी की पूजा अवश्य करना चाहिए। इसके बाद चालीसा या अन्य शनि से संबंधित धार्मिक पाठ करें और फिर आरती उतारें।
शनिदेव की पूजा करते समय ध्यान रखें यह बात
ध्यान रखें कि शनिदेव की पूजा करते समय उनकी मूर्ति के ठीक सामने ना खड़े हों और ना ही उनकी आंखों में देखें। शनिदेव की पूजा करते समय उनके चरणों की ओर देखने का विधान है इसलिए शनिदेव के चरणों की ओर देखते हुए शनिदेव की पूजा करनी चाहिए। शनिदेव की दृष्टि अशुभ होने के कारण शनिदेव की आंखों में देखकर पूजा नहीं की जाती।
शनि स्तोत्र (Shani Stotra)
नमस्ते कोणसंस्थाचं पिंगलाय नमो एक स्तुते
नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमो ए स्तुत
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो
नमस्ते मंदसज्ञाय शनैश्चर नमो ए स्तुते
प्रसाद कुरू देवेश दिनस्य प्रणतस्य च
कोषस्थह्म पिंगलो बभ्रूकृष्णौ रौदोए न्तको यम:
सौरी शनैश्चरो मंद: पिप्लदेन संस्तुत:
एतानि दश नामामी प्रातरुत्थाय ए पठेत्
शनैश्चरकृता पीडा न कदचित् भविष्यति