Narsimha Jayanti 2023: नृसिंह जयंती पर जानिए नृसिंह व्रत कथा, पूजनविधि और लाभ…
Last Updated on 2 years by City Hot News | Published: May 4, 2023
Narsimha Jayanti 2023: पंचांग के अनुसार नृसिंह जयंती हर साल वैशाख मास की शुक्ल चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है जो इस साल 4 मई को है। अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए इसी दिन भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था। उनका आधा शरीर मनुष्य और आधा शरीर सिंह जैसा था। प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से मुक्त करवाया था। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व, पूजाविधि और व्रत कथा।
नृसिंह जयंती का व्रत वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है और इस साल यह तिथि आज यानी कि 4 मई को है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने और उसके अत्याचारी पिता हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए नृसिंह अवतार लिया है। इस अवतार का प्राकट्य वैशाख मास की चतुर्दशी को ही हुआ था। इसलिए इस दिन को भगवान नृसिंह की जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
नृसिंह जयंती का महत्व
नृसिंह जयंती के दिन भक्तों को सूर्योदय से पहले उठकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि जिन लोगों को रात में भय लगता है या फिर डरावने सपने आते हैं, उनको नृसिंह जयंती पर पूजा करने से भगवान की विशेष कृपा मिलती है। इसके अलावा जिन लोगों की कुंडली में मंगल का दोष है उन्हें भी नृसिंह जयंती पर पूजा करनी चाहिए। नृसिंह जयंती पर भक्तगण व्रत का संकल्प लेते हैं और पूरे दिन व्रत रखते हैं। मान्यता है कि नृसिंह जयंती के दिन व्रत रखने से भक्त के सारे दुख दूर हो जाते हैं। इस मंत्र का जप करनी चाहिए।
नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु।
नृसिंह जयंती की व्रत कथा
कथानुसार अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न कर उनसे अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। वरदान प्राप्त करते ही अहंकारवश वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा और उन्हें तरह-तरह के यातनाएं और कष्ट देने लगा। इस कारण से प्रजा अत्यंत दुखी रहती थी और इन्हीं दिनों हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी बचपन से ही श्रीहरि की भक्ति से प्रह्लाद को गहरा लगाव था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद का मन भगवान की भक्ति से हटाने के लिए कई असफल प्रयास किए, परन्तु वह सफल नहीं हो सका। एक बार उसने अपनी बहन होलिका की सहायता से उसे अग्नि में जलाने के प्रयास किया, परन्तु प्रह्लाद पर भगवान की असीम कृपा होने के कारण वह अपने इरादों में सफल नहीं हो पाया। एक दिन उसने प्रह्लाद को तलवार से मारने का प्रयास किया, तब भगवान नृसिंह खंबा फाड़कर प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और अपने भक्त की रक्षा की। इस दिन यदि कोई व्रत रखते हुए श्रद्धा और भक्तिपूर्वक भगवान नृसिंह की सेवा-पूजा करता है तो वह सभी जन्मों के पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।
नृसिंह जयंती की पूजाविधि
पूजा के लिए यदि आपके पास भगवान नृसिंह की तस्वीर या मूर्ति नहीं है तो आप भगवान विष्णु की तस्वीर भी पूजा में रख सकते हैं। उनके साथ देवी लक्ष्मी की मूर्ति भी रखें और भक्ति भाव से पूजा करें। पूजा में फल, पुष्प, कुमकुम, केसर, पंचमेवा, नारियल, अक्षत और पीताम्बर रखें। गंगाजल, काले तिल, पंचगव्य और हवन सामग्री चढ़ाएं। भगवान नृसिंह को चंदन, कपूर, रोली व तुलसीदल भेंट कर धूपदीप दिखाएं। इसके बाद आरती करें भोग लगाएं। मान्यता है कि इस दिन रात्रि जागरण करने का विशेष फल प्राप्त होता है। भगवान नृसिंह की जयंती पर गरीबों को दान करने का विशेष महत्व बताया जा रहा है। व्रत करने वाले श्रद्धालु को सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण तथा वस्त्र दान करना चाहिए। आपकी समस्त मनोकामनाएं पूरी होंगी।