साय कैबिनेट में नहीं मिली जगह, अब लोकसभा से आस: इनमें सांसद से पूर्व मंत्री तक; कुछ को मिल सकती है संगठन में जिम्मेदारी….
Last Updated on 11 months by City Hot News | Published: December 27, 2023
रायपुर// छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनने के बाद कई बड़े नाम सीएम पद से लेकर मंत्रिमंडल तक की दौड़ में शामिल थे। इनमें सांसद, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष से लेकर आधा दर्जन से ज्यादा पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। अब इन नेताओं के पास विधायकी के अलावा कोई जिम्मेदारी नहीं है।
रेणुका सिंह ने केंद्रीय मंत्री का पद छोड़कर विधानसभा का चुनाव लड़ा। सरकार बनने के बाद सीएम पद की प्रबल दावेदार रहीं, लेकिन इन्हें मंत्रिमंडल में भी जगह नहीं मिली। ऐसी ही स्थिति सांसद गोमती साय के साथ भी रही। इन नेताओं को लोकसभा चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।
रेणुका सिंह छत्तीसगढ़ में महिला मोर्चा की मंत्री भी रही हैं।
रेणुका सिंह
केंद्रीय राज्यमंत्री का पद छोड़कर रेणुका सिंह ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। साल 2003 में पहली बार प्रेमनगर सीट से विधायक चुनी गई थीं। 2008 में दूसरी बार विधायक और महिला बाल विकास मंत्री बनीं। 2019 में सरगुजा सीट से लोकसभा सांसद चुनी गईं। मोदी मंत्रिमंडल में अनुसूचित जनजाति विकास राज्यमंत्री रहीं।
क्यों नहीं मिला मंत्री पद
- सरगुजा संभाग से ही सीएम विष्णुदेव साय और रामविचार नेताम जैसे अनुभवी चेहरे हैं।
- कैबिनेट में सरगुजा संभाग से ही केवल 1 महिला लक्ष्मी राजवाड़े को जगह दी गई है।
- क्षेत्रवार और जातिगत समीकरण के हिसाब से सीमित संख्या में ही मंत्री।
- सत्ता में पावर का बैलेंस बनाने के लिए मंत्री पद नहीं दिया गया।
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- रेणुका सिंह को फिर से लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है।
- संगठन में राष्ट्रीय स्तर का पद दिया जा सकता है।
- मंत्रिमंडल में बचे हुए 1 पद को लेकर भी नाम चर्चाओं में है।
- केंद्रीय स्तर के आयोग में जगह मिल सकती है।
गोमती साय ने इस चुनाव में पत्थलगांव सीट से कांग्रेस के 9 बार के विधायक रहे रामपुकार सिंह को हराया है।
गोमती साय
लो-प्रोफाइल रहने वाली गोमती साय विधायक चुनी गईं और लोकसभा से इस्तीफा दिया। 2005 में पहली बार जिला पंचायत सदस्य बनी थीं। 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष जशपुर बनी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने विष्णुदेव साय का टिकट काटकर उन्हें रायगढ़ से उम्मीदवार बनाया था।
क्यों नहीं मिला मंत्री पद
- सांसद रहते हुए भी जशपुर से बाहर कोई खास राजनीतिक पहचान नहीं।
- सरगुजा संभाग से ही सीएम विष्णुदेव साय और रामविचार नेताम जैसे अनुभवी चेहरे हैं।
- कैबिनेट में सरगुजा संभाग से ही केवल एक महिला नए चेहरे लक्ष्मी राजवाड़े को जगह दी गई है
- सांसद रहते हुए भी जीत का अंतर महज 255 वोटों का रहा।
- पावर बैलेंस बनाने के लिए नहीं दिया गया मंत्री पद।
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- गोमती साय को भी फिर से लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है।
- संगठन में प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर का पद दिया जा सकता है।
- मंत्रिमंडल में बचे हुए 1 पद को लेकर भी नाम चर्चाओं में है।
- गोमती साय को राज्यसभा भी भेजा जा सकता है।
रमन सरकार में मंत्री रहे इन चेहरों को नहीं मिली जगह
अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, पुन्नुलाल मोहले, विक्रम उसेंड़ी, लता उसेंडी और भैय्या लाल रजवाड़े रमन सरकार में मंत्री थे। धरमलाल कौशिक विधानसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, लेकिन इस बार मंत्रिमंडल में किसी को शामिल नहीं किया गया।
अमर अग्रवाल बिलासपुर से विधायक हैं। मंत्रिमंडल में इस संभाग में ओबीसी फैक्टर हावी रहा।
अमर अग्रवाल : क्यों नहीं बनाया गए मंत्री
- ओबीसी फैक्टर- बिलासपुर संभाग से डिप्टी सीएम अरुण साव और मंत्री पद में शामिल ओपी चौधरी और लखनलाल देवांगन ओबीसी हैं।
- अग्रवाल समाज से बृजमोहन अग्रवाल मंत्री बने हैं। सामाजिक समीकरण के चलते एक को ही जगह।
- रमन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए आंख फोड़वा कांड, गर्भाशय कांड जैसे मामले रहे।
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- बिलासपुर लोकसभा से चुनाव लड़ाया जा सकता है।
- बचे हुए 1 मंत्री पद में नाम चर्चाओं में
- संगठन में अहम जिम्मेदारी या फिर केन्द्रीय स्तर के पदों में जगह मिल सकती है।
अजय चंद्राकर 2003 से 2008 तक और 2013 में रमन सरकार में मंत्री भी रहे थे।
अजय चंद्राकर
अजय चंद्राकर 1998 और फिर 2003 में विधायक चुने गए। 2008 मे हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन फिर से 2013, 2018 और अब 2023 में 5वीं बार चुनकर आए हैं। इस चुनाव में तारिणी नीलम चंद्राकर को अजय ने 8090 वोटों से शिकस्त दी है।
क्यों नहीं बनाया गए मंत्री
- ओबीसी कुर्मी वर्ग के सामाजिक और जातिगत समीकरण के तहत नए चेहरे टंकराम वर्मा को जगह दी गई।
- पार्टी अगली पंक्ति के नेता तैयार कर रही है।
- कद्दावर नेता होने के बावजूद अपने जिले की दो सीटें सिहावा और धमतरी नहीं जिता पाए।
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- लोकसभा को लेकर संगठन की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
- दूसरे राज्यों की भी जिम्मेदारी मिल सकती है।
राजेश मूणत 15 साल लगातार रमन सिंह सरकार में मंत्री रहे हैं।
राजेश मूणत
पार्टी के कद्दावर चेहरे राजेश मूणत को तगड़े मैनेजमैंट के लिए जाना जाता है। प्रदेश में राष्ट्रीय नेताओं की रैलियों से लेकर पार्टी के बड़े इवेंट्स की जिम्मेदारी ज्यादातर मूणत को दी जाती रही है। राजेश मूणत 2003, 2008 और 2013 में विधायक चुने गए। रमन सरकार में 2003, 2008 और 2013 में मंत्री रहे। 2018 में हार गए, लेकिन 2023 के चुनाव में फिर से जीत मिली।
क्यों नहीं बनाए गए मंत्री
- रायपुर संभाग से 1 सामान्य और 1 ओबीसी को कैबिनेट में जगह मिली।
- 2018 की हार का भी फैक्टर आड़े आया।
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है।
- संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।
- बचे हुए 1 पद में अल्पसंख्यक कोटे से मंत्री बनाए जा सकते हैं।
रमन सरकार में मंत्री रहे पुन्नूलाल मोहले SC वर्ग से पार्टी का चेहरा हैं।
पुन्नुलाल मोहले
45 साल से राजनीति में सक्रिय पुन्नूलाल मोहले 3 बार मंत्री और 4 बार सांसद रह चुके हैं। वे 7वीं बार विधायक चुने गए हैं। 1985, 1990, 1994, 2008, 2013, 2018, 2023 में विधायक चुने गए।1996, 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा के लिए चुने गए। रमन सरकार में 2008 , 2013 में मंत्री रहे।
क्यों नहीं बनाए गए मंत्री
- SC वर्ग से दयालदास बघेल को मौका दिया गया
- बिलासपुर संभाग से तीन ओबीसी चेहरों को जगह दी गई।
- उम्र का फैक्टर आड़े आया। 70 की उम्र पार कर चुके हैं मोहले।
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- SC वर्ग के तहत कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।
- संगठन में बड़ा पद मिल सकता है।
विक्रम उसेंडी जून 2020 तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
विक्रम उसेंडी
विक्रम उसेंडी पार्टी का सरल आदिवासी चेहरा हैं। 1993 में पहली बार अविभाजित मध्यप्रदेश के बस्तर में नारायणपुर सीट से पहली बार विधायक बने। 2003, 2008, 2013 और 2023 में जीत हासिल की। 2014 में कांकेर से लोकसभा सांसद चुने गए। विक्रम उसेंडी सांसद रहने के साथ ही छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष, फिर अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
क्यों नहीं बनाए गए मंत्री
- बस्तर संभाग से आदिवासी चेहरे केदार कश्यप को मौका मिला
- मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय समेत कैबिनेट में 3 आदिवासी चेहरे
- 2018 में मिली हार के बाद प्रदेश स्तर की सक्रियता नहीं होने का फैक्टर
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है।
- संगठन में जिम्मेदारी तय की जा सकती है।
लता उसेंडी 2004 में भाजयुमो की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुकी हैं।
लता उसेंडी
लता उसेंडी 2003 में पहली बार कोंडागांव से विधायक बनीं। 2005 से 2013 तक रमन सरकार में महिला एवं बाल विकास विभाग मंत्री बनाई गई थीं। 2013 और 2018 में चुनाव हार गईं। 2023 में 5वीं बार विधायक चुनी गई हैं।
क्यों नहीं मिला मंत्री पद
- बस्तर से केदार कश्यप को मौका दिया गया
- महिला मंत्री में सीमित संख्या रखी गई। केवल 1 महिला को जगह मिली
- सीएम विष्णुदेव साय और रामविचार नेताम जैसे आदिवासी चेहरे जातिगत समीकरण के लिए मौजूद
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- बस्तर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है।
- संगठन में जिम्मेदारी तय की जा सकती है।
- राज्यसभा सीट भी दी जा सकती है।
भैयालाल राजवाड़े को 2013 में खेल, श्रम, युवा कल्याण विभाग का मंत्री बनाया गया था।
भैयालाल राजवाड़े
भैयालाल राजवाड़े अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत में 20 साल तक सरपंच रहे। वह भाजपा कार्य समिति के सदस्य भी रहे हैं। 2003 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और हार गए। 2008 में पहली बार बैकुंठपुर सीट से विधायक निर्वाचित हुए। 2018 में हारे, फिर 2023 में जीत मिली।
क्यों नहीं बनाए गए मंत्री
- राजवाड़े समाज से नए चेहरे लक्ष्मी राजवाड़े को मंत्रिमंडल में जगह दी गई।
- करीब 75 साल के भैयालाल राजवाड़े के लिए उम्र का फैक्टर आड़े आया
- सरगुजा से कई बड़े चेहरे जीतकर आए सभी को संतुष्ट करना मुश्किल रहा
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- संगठन की जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं।
- सरगुजा के लिए बीजेपी ने अलग घोषणाएं की थी। इसलिए यहां की जिम्मेदारी राजवाड़े को दी जा सकती है।
5 जनवरी 2009 को धरमलाल कौशिक छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष बनाए गए थे।
धरमलाल कौशिक
1998 में पहली बार बिल्हा से विधायक चुने गए। 2008, 2018 और अब बार 2023 में चौथी बार विधायक बने हैं। 2006 से 2008 तक महामंत्री प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता भी रहे। 16 अगस्त 2014 को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए। 2019 से 21 तक नेता प्रतिपक्ष भी रहे।
क्यों नहीं बनाए गए मंत्री
- कौशिक ओबीसी वर्ग से आते हैं। डिप्टी सीएम अरुण साव समेत मंत्रिमंडल में शामिल बिलासपुर संभाग से तीनों चेहरे ओबीसी हैं
- नए चेहरों को मौका दिए जाने के फैक्टर में पिछड़ गए कौशिक
- 2018 में प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए मिली हार का भी फैक्टर रहा
- कैबिनेट में 6 ओबीसी को जगह मिली
क्या हो सकती है नई जिम्मेदारी
- ओबीसी वर्ग को साधने के लिए नई जिम्मेदारी संगठन में दी जा सकती है
- प्राधिकरण में जिम्मेदारी तय की जा सकती है
- संवैधानिक पदों में हो सकती है नियुक्ति