Astrology: कुंडली में कैसे बनता है व्यापारी बनने का योग, आखिर कौन से ग्रह होते हैं जिम्मेदार ?

वैदिक ज्योतिष में बुध को व्यापार का कारक माना गया है वही गुरु धन के कारक हैं। ऐसे में अगर जातक की कुंडली में बुध और गुरु की स्थिति बढ़िया है तो जातक अच्छा व्यापारी बनता है।

kundali: वैदिक ज्योतिष में ऐसे कई नियम बताए गए हैं जिनसे जातक की आजीविका का पता लगाया जाता है।

वैदिक ज्योतिष में ऐसे कई नियम बताए गए हैं जिनसे जातक की आजीविका का पता लगाया जाता है। आमतौर पर लग्न कुंडली और दशमांश कुंडली का अध्ययन करने से जातक किस माध्यम से धन प्राप्त करेगा ऐसा जाना जा सकता है। लग्न कुंडली के दशम भाव, दूसरे भाव, छठे भाव की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। दशम भाव को ज्योतिष में कर्म का भाव कहा गया है, दूसरे भाव से जातक के पैतृक काम का वही छठे भाव से जातक की नौकरी का विचार किया जाता है। इसके अलावा दशम भाव में विराजमान ग्रह और दशम भाव के स्वामी की स्थिति से भी धन अर्जन का विचार होता है।

जातक की लग्न कुंडली का स्वामी दशमांश कुंडली में अगर बलवान नहीं हो तो जातक को खुद का काम शुरू करने में परेशानियां आती हैं। इसके अलावा दशमांश कुंडली के दशम भाव का स्वामी अगर राजयोग बना रहा है तो ऐसा जातक अपने कार्य स्थल पर अच्छी तरक्की करता है। दशम भाव का स्वामी अगर दूसरे भाव के स्वामी से युति करे तो ऐसा जातक अपने पैतृक काम को देखता है। वैदिक ज्योतिष में बुध को व्यापार का कारक माना गया है वही गुरु धन के कारक हैं। ऐसे में अगर जातक की कुंडली में बुध और गुरु की स्थिति बढ़िया है तो जातक अच्छा व्यापारी बनता है। उदाहरण के लिए अगर तुला लग्न की कुंडली में अगर लाभ स्थान में सूर्य बुध गुरु बैठे हो तो ऐसा जातक अपनी वाणी और अपनी विद्या से किसी बड़े संस्थान या कोचिंग कोचिंग सेंटर का मालिक बन सकता है।

इसी प्रकार अगर कुम्भ लग्न की कुंडली में मंगल बुध दोनों दशम भाव में हो तो जातक किसी बड़े रेस्टोरेंट का मालिक बन सकता है। इसलिए कुंडली में जब भी बुध गुरु और मंगल जैसे ग्रह मजबूत होते है तो जातक अच्छा व्यापारी बनता है। मंगल रक्त का कारक है और साहस के बिना कोई भी बड़ा काम नहीं किया जा सकता है इसलिए मंगल का बलवान होना भी बेहद ज़रूरी हो जाता है।