अमेरिका 1 जून तक हो सकता है कैशलेस: वित्त मंत्री ने दी चेतावनी- कर्ज की सीमा नहीं बढ़ी तो बिल नहीं भर पाएगी सरकार…
Last Updated on 2 years by City Hot News | Published: May 2, 2023
अमेरिकी सरकार ने अपनी खर्च करने की सीमा को पार कर लिया है। इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिकी सरकार के पास अब अपने बिलों का भुगतान करने और अपने कर्ज चुकाने के लिए पैसे नहीं बचे हैं। सोमवार को अमेरिका की ट्रेजरी सेक्रेटरी जेनेट एल येलन ने स्पीकर को चिट्ठी लिखकर कहा कि कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाया नहीं गया तो 1 जून तक सरकार के पास देश चलाने के लिए पैसे खत्म हो जाएंगे। सरकार कैश लेस हो जाएगी।
अमेरिका में कैश लेस होने की तारीख को X डेट यानी खतरे की तारीख कहा जा रहा है। इसकी वजह ये है कि अगर सरकार के पास पैसा नहीं होगा तो पूरे देश में आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ जाएंगी। ऐसे में अगर देश डिफॉल्ट करता है, तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। सरकारी कर्मचारियों को सैलरी नहीं मिलेगी, अलग-अलग योजनाओं के तहत चल रहे काम रुक जाएंगे
सरकार को 726 बिलियन डॉलर का उधार चाहिए
दरअसल, अमेरिका में सरकार के कर्ज की एक सीमा तय होती है। वो देश चलाने के लिए उससे ज्यादा उधार नहीं ले सकती है। बीते सालों में सरकार को कैश लेस होने से बचाने के लिए ये सीमा कई बार बढ़ी है। अमेरिका की ओर से इस तिमाही में 726 बिलियन डॉलर की राशि उधार लेने का लक्ष्य रखा गया है। यह जनवरी में पेश किए गए अनुमान से 449 बिलियन डॉलर अधिक है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका का बजट घाटा बहुत ज्यादा है। इसका मतलब ये हुआ कि सरकार का खर्च उसकी कमाई से कहीं ज्यादा है। इसके चलते उसे अपने कामकाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है।अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट के मुताबिक मार्च 2023 में वहां की सरकार का बजट घाटा 30 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। रिसर्च सेंटर PEW के मुताबिक 2022 में अमेरिका की GDP पर 121% का कर्ज था। इससे समझा जा सकता है कि वहां की सरकार अपने खर्चों के लिए किस हद तक कर्ज पर निर्भर करती है।
तस्वीर अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट एल येलेन की है।
ट्रम्प की पार्टी बनी रुकावट
अब बात राजनीति की। पिछले साल हुए मिड टर्म चुनाव में अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स में ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी को बाइडेन की डेमाक्रेटिक पार्टी से 9 सीटें ज्यादा मिलीं थी। अपर हाउस का स्पीकर भी रिपब्लिकन पार्टी का कैंडिडेट केविन मैकार्थी चुना गया था। जिससे देश चलाने के डेमोक्रेट्स के एजेंडा रुकने लगे। अब कर्ज की सीमा बढ़ाने का सारा दारोमदार अपर हाउस और रिपब्लिकन पार्टी पर निर्भर करता है।
सरकार को और कर्ज देने की सीमा बढ़ाने का बिल काफी समय से अपर हाउस में लटका हुआ है। रिपब्लिकन पार्टी के मेंबर और स्पीकर ने फरवरी में बाइडेन से घंटे भर की बातचीत के बाद भी बिल पास करने से इनकार कर दिया था। ट्रेजरी सेक्रेटरी जेनेट का कहना है कि अगर बातचीत कर कोई हल नहीं निकाला गया देश बड़ी मुसीबत में फंस जाएगा। इसके बाद बाइडेन फिर से केविन मैकार्थी और रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं के साथ बैठक करेंगे।
तस्वीर रिपब्लिकन पार्टी के नेता और हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स के स्पीकर केविन मैकार्थी की है।
बाइडेन के एजेंडा में 14% की कटौती चाहते हैं रिपब्लिकन
अप्रैल में रिपब्लिकन पार्टी ने एक बिल पास किया था जिसमें ये प्रस्ताव रखा गया था कि अगर बाइडेन अपने हेल्थ, क्लाइमेट चेंज और सोशल प्रोग्राम जैसी योजनाओं में 14% की कटौती करने को तैयार हैं तो वो कर्ज की सीमा को बढ़ा देंगे। हालांकि बाइडेन ये प्रस्ताव मानने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं। अगले साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में ये बजट घाटे पर विवाद बाइडेन की पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। रिपब्लिकन लगातार अर्थव्यवस्था पर डेमोक्रेट्स को घेर रहे हैं।
अमेरिका में हर व्यक्ति पर करीब 17 लाख रुपये कर्ज
समान्य तौर पर देखें तो अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर और अमीर देश है, लेकिन कर्ज के डेटा को देखें तो अमेरिका में GDP की तुलना में कर्ज सबसे ज्यादा है। BBC रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि बीते साल अमेरिका का GDP 21.44 ट्रिलयन डॉलर का था, लेकिन अमेरिका पर कर्ज 27 ट्रिलियन डॉलर का था। अमेरिका के कुल 32 करोड़ आबादी पर इस कर्ज को बांट दिया जाए तो करीब 17 लाख रुपए (23500 डॉलर) हर व्यक्ति पर यह कर्ज होता है।
अमेरिका पर कर्ज बढ़ने की बड़ी वजह
अमेरिका पर 2019 से 2021 तक कर्ज बढ़ने की कई वजह हैं। एक तो विकसित देश कर्ज बाजार में पैसा लगाकर रेवेन्यू कमाने के लिए करते हैं, लेकिन सरकार पर बेरोजगारी बढ़ने, ब्याज दर में कटौती आदि की वजह से भी कर्ज बढ़ते हैं। ब्याज दर में कटौती से अमेरिका में महंगाई बढ़ी। सरकार ने खर्च पर रोक न लगाकर कर्ज लेकर उसकी भरपाई की। कॉरपोरेट टैक्स 2019 में 35% से घटाकर 21% कर दिया गया। साथ ही दुनिया में ताकतवर कहलाने के लिए भी अमेरिका ने बीते दशक में काफी पैसा खर्चा किया है। फिलाहल अमेरिका रूस के खिलाफ यूक्रेन को करोड़ों की मदद दे चुका है। वहीं चीन से निपटने के लिए ताइवान के लिए भी खूब खर्च किया है।