महाभारत एक रहस्य : भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत का युद्ध क्यों नहीं लड़ा, इसलिए बने रहे पार्थ के सारथी…
Last Updated on 2 years by City Hot News | Published: May 10, 2023
Mahabharat Unknown Story: महाभारत में भगवान कृष्ण ने पांड़वों का साथ दिया था। भगवान कृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे। लेकिन क्या आपके मन में भी सवाल आता है कि जब भगवान कृष्ण क्षण भर में महाभारत का युद्ध समाप्त कर सकते थे तो उन्होंने युद्ध क्यों नहीं लड़ा। आइए जानते हैं महाभारत के इस रहस्य का सवाल।
महाभारत युद्ध की तस्वीर जब भी आपने देखा होगा उसमें भगवान श्रीकृष्ण को सारथी के रूप में ही पाया गया होगा। दरअसल महाभारत के महायुद्ध से पहले ही श्रीकृष्ण ने कह दिया था कि वह महाभारत के महायुद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे और न युद्ध करेंगे। पूरे महाभारत के दौरान कई विषम स्थितियां आईं लेकिन श्रीकृष्ण स्थिरचित्त बने रहे और उन्होंने अपना सुदर्शन चक्र नहीं चलाया न ही किसी से युद्ध किया। बस एक बार ही युद्ध के आरंभ में भीष्म की मनोदशा और इच्छा का सम्मान करने के लिए और अर्जुन को कर्तव्य का बोध कराने के लिए श्रीकृष्ण ने रथ का पहिया हाथों में उठा लिया। ऐसे में अर्जुन ने श्रीकृष्ण के चरण पकड़ लिए और श्रीकृष्ण से रथ का पहिया रख देने के लिए कहा। सवाल उठता है कि, आखिर श्रीकृष्ण ने युद्ध न करने की बात क्यों की। क्यों खुद को युद्ध से अलग रखा, क्यों वह महज पार्थ यानी अर्जुन के सारथी बनकर मार्गदर्शक बने रहे। आइए जानते हैं इस रहस्य युक्त सवाल का जवाब।
महाभारत युद्ध के इस रहस्य को जानने से पहले भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के पूर्वजन्म को जानना होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण पूर्व जन्म में नारायण थे और अर्जुन नर थे जिन्होंने बदरीकाश्राम यानी बदरीनाथ में नर और नारायण पर्वत पर तपस्या की थी। नारायण और नर दोनों ही भगवान विष्णु के अंश से ही उत्पन्न हुए थे। क्योंकि उस समय सूर्य भगवान के एक असुर भक्त दम्बोद्भव ने सूर्यदेव की तपस्या करके उनसे 1000 कवच का वरदान मांग लिया था। इस कवच के साथ यह भी शर्त थी की 1000 साल तपस्या के बाद ही कोई इस कवच को तोड़ सकता था और जो भी इसे तोड़ता वह स्वयं भी मर जाता। इस वरदान को पाकर दम्बोद्भव अपने आप को अमर मान बैठा था और देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार कर रहा था।
नर और नारायण को दम्बोद्भव ने युद्ध के लिए ललकारा तब नारायण ने दम्बोद्भव से युद्ध किया और 1 हजार साल के युद्ध के बाद आखिर नारायण ने असुर का पहला कवच तोड़ दिया। लेकिन कवच तोड़ने के साथ वह स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त हो गए। तब नर ने उन्हें महामृत्युंजय मंत्र से जीवित कर दिया और दंबोद्भव से युद्ध करना आरंभ किया। यह युद्ध भी एक हजार साल चलता रहा और नर ने असुर का दूसरा कवच तोड़ दिया।
इस बीच नारायण ने एक हजार साल की तपस्या पूरी कर ली। और दंबोद्भव से युद्ध करने लगे। इस तरह से बारी-बारी युद्ध करते हुए नर नारायण ने दंबोद्भ असुर के 999 कवच तोड़ डाले। जब अंतिम कवच रह गया तव वह असुर सूर्यदेव के पीछे जाकर छुप गया। सूर्यदेव ने अपनी शरण में आए भक्त को नर-नारायण से बचा लिया। लेकिन खुद को नर-नारायण के शाप से नहीं बचा पाए। नर नारायण ने सूर्य देव से कहा कि आपका यह भक्त द्वापर में आपके अंश से उत्पन्न होगा और तब आपको अपने पुत्र की मृत्यु का शोक भोगना पड़ेगा। सूर्यदेव का वह असुर भक्त ही द्वापर में कर्ण हुआ जो सूर्य के अंश से कवच कुंडल के साथ उत्पन्न हुआ था।
नर ने 1000 वर्ष की तपस्या पूरी कर ली थी। और दंबोद्भव से अंतिम युद्ध करने की उनकी बारी थी। इसलिए नारायण ने अर्जुन से कहा था कि यह महाभारत का युद्ध तुम्हारा युद्ध है। तुम्हें ही यह युद्ध लड़ना होगा। इस युद्ध में मैं मार्गदर्शक ही हो सकता हूं। इस युद्ध को जीतकर तुम्हें कीर्ति की प्राप्ति होगी और धरती का सुख प्राप्त होगा। तुम अपना युद्ध नहीं लड़ोगे तो मैं भी तुम्हारी मददद नहीं कर पाऊंगा। क्योंकि कर्ण का वध तो केवल अर्जुन ही कर सकते थे क्योंकि सूर्य के वरदान के कारण दंबोद्भव को वही मार सकता था जिसने 1 हजार वर्ष तपस्या की हो। और कर्ण अगर जीवित रह जाता तो महाभारत युद्ध पांडव नहीं जीत पाते। इसलिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध करने के लिए कहा और स्वयं पार्थ के सारथी बने रहे।
महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृण ने स्वयं युद्ध न करके अर्जुन से युद्ध के लिए आगे किया इसके पीछे एक रहस्य यह भी है कि भगवान कहते हैं मैं तो मार्गदर्शक हो सकता है। बुद्धि रूपी रथ का सारथी हो सकता हूं लेकिन हर व्यक्ति का जीवन में अपना-अपना युद्ध होता है। और जो अपना युद्ध स्वयं नहीं लड़ सकता है, भगवान भी उसकी मदद नहीं करते हैं। इसलिए हमेशा यह समझना चाहिए कि जब युद्ध हमारा है तो यह हमें ही लड़ना होगा, ईश्वर हमारे बदले आकर युद्ध नहीं लड़ेंगे। अगर सत्य की लड़ाई करेंगे तो ईश्वर सारथी बनेंगे और अगर असत्य की ओर से युद्ध करेंगे तो वह आपके सारथी भी नहीं बनेंगे और फिर कौरवों की तरह विनाश होना तय है।
पं. राकेश झा