45 मिनट चली रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा पूजा: 12.10 बजे संकल्प के साथ शुरू हुई विधि, आरती के बाद PM मोदी ने किया साष्टांग प्रणाम…

Last Updated on 10 months by City Hot News | Published: January 22, 2024

अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई है। श्रीराम विग्रह के प्रथम दर्शन भी हो गए। PM मोदी ने आरती के साथ पूजा पूरी की, उनके साथ गर्भगृह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ. मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद रहे।

सुबह मंत्रोच्चार से रामलला को जगाया, मंगल ध्वनि से शुरू हुई प्राण-प्रतिष्ठा
सुबह मंत्रोच्चार के साथ रामलला को जगाया गया। इसके बाद वैदिक मंत्रों के साथ मंगलाचरण हुआ। 10 बजे से शंख समेत 50 से ज्यादा वाद्य यंत्रों की मंगल ध्वनि के साथ प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम शुरू हुआ। दोपहर 12.29 बजे प्राण-प्रतिष्ठा की मुख्य विधि शुरू हुई। 84 सेकेंड में ही मूर्ति में प्राण स्थापना हो गई।

मंत्रोच्चार के साथ श्री रामलला के चरणों में जल छोड़ा, फिर अक्षत और पुष्प चढ़ाए। नैवेद्य लगाकर आरती के साथ पूजा पूरी की। इसके बाद रामलला को साष्टांग प्रणाम किया और संतों का आशीर्वाद लिया। 

अब प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंडप में वसोधारा पूजन होगा। ऋग्वेद और शुक्ल यजुर्वेद की शाखाओं का होम और परायण होगा। इसके बाद शाम को पूर्णाहुति होगी और देवताओं का विसर्जन किया जाएगा।

पढ़िए, करीब 50 मिनट चली पूजा में कब क्या हुआ…
11.55 AM: मंदिर के उत्तरी द्वार से PM मोदी मंदिर परिसर में पहुंचे। हाथ में चांदी का छत्र और रामलला के वस्त्र लेकर सीधे मंदिर के अंदर गए। यहां संघ प्रमुख मोहन भाववत, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूजा में शामिल हुए।

12.10 PM: राम मंदिर के मुख्य अर्चक पं. मोहित पांडे ने सबसे पहले शुद्धिकरण कराया। हाथ में जल लेकर पूजा और प्राण-प्रतिष्ठा का संकल्प कराया। इसके बाद प्राण-प्रतिष्ठा की मुख्य विधि शुरू हुई।

गर्भगृह में रामलला विराजमान के सामने पूजन विधि पूरी करते हुए PM मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।

गर्भगृह में रामलला विराजमान के सामने पूजन विधि पूरी करते हुए PM मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।

12.15 PM: प्राण-प्रतिष्ठा की पूजा शुरू हुई। रामलला विराजमान और तीनों भाइयों की प्रतिमा के सामने बैठकर PM मोदी ने पूजन किया। गणपति पूजा हुई। रामलला को विभिन्न पूजन सामग्रियां और फूल चढ़ाए गए।

गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा विधान में PM मोदी। साथ में है संघ प्रमुख मोहन भागवत।

गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा विधान में PM मोदी। साथ में है संघ प्रमुख मोहन भागवत।

12.25 PM: रामलला की आंखों से पट्टी हटाई गई। PM मोदी ने प्रतिमा का पूजन किया। प्रतिमा के चरणों में कमल के फूल अर्पित किए।

12.29 से 12.31 PM: कमल के फूल से PM मोदी ने प्रतिमा के जल छिड़क कर प्राण-प्रतिष्ठा की मुख्य विधि को पूरा किया। रामलला के विग्रह पर अलग-अलग पूजन सामग्रियां चढ़ाई।

12.35 PM: प्रधानमंत्री मोदी रामलला की पूजा की और धूप आरती की।

प्राण-प्रतिष्ठा के बाद रामलला को धूप दर्शन करवाते हुए मोदी।

प्राण-प्रतिष्ठा के बाद रामलला को धूप दर्शन करवाते हुए मोदी।

12.40 PM: रामलला की आरती की गई। PM मोदी सहित सभी अतिथियों ने रामलला की दीपों से आरती की। आरती के दौरान PM मोदी ने चंवर डुलाकर रामलला की सेवा भी की।

प्राण-प्रतिष्ठा के बाद गर्भगृह में रामलला की आरती करते PM मोदी।

प्राण-प्रतिष्ठा के बाद गर्भगृह में रामलला की आरती करते PM मोदी।

12.55 PM: रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का विधान पूरा हुआ। PM मोदी ने गर्भगृह से निकलकर रामलला को साष्टांग प्रणाम किया। फिर मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास और राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास का आशीर्वाद लिया।

PM मोदी ने आरती के बाद रामलला को साष्टांग प्रणाम किया

PM मोदी ने आरती के बाद रामलला को साष्टांग प्रणाम किया

16 जनवरी से शुरू हो गए थे प्राण-प्रतिष्ठा से जुड़े शुभ संस्कार
इससे पहले 7 दिनों में अयोध्या नगरी कुल साढ़े 5 लाख मंत्रों से गूंज उठी। इस महोत्सव में होने वाली वैदिक क्रियाएं और शुभ संस्कार 16 तारीख से शुरू हो गए थे। काशी के 121 वैदिक-कर्मकांडी ब्राह्मणों ने इन मंत्रों का सिलसिलेवार ढंग से धाराप्रवाह वाचन किया।

पहले दिन प्रायश्चित्त होम यानी पवित्रीकरण की क्रिया हुई। इसके बाद कलश पूजन और मूर्ति की शोभायात्रा हुई फिर मूर्ति का परिसर में प्रवेश हुआ। जलयात्रा और तीर्थ पूजा हुई और अधिवास हुए।

मूर्ति की पवित्रता और शक्ति बढ़ाने के लिए मूर्ति को जल, घी, औषधि, केसर, शहद, फल, अनाज और सुगंधित चीजों में रखा गया। इसे अधिवास कहते हैं। इसके बाद श्रीरामलला को 20 जनवरी को स्थापित किया।

पिछले 6 दिनों में कब, कौन से पूजा अनुष्ठान हुए, इसे समझते हैं…

16 जनवरी, मंगलवार
इस दिन प्राण-प्रतिष्ठा में पूजा करने वाले यजमान ने प्रायश्चित्त किया और सरयू नदी में स्नान किया। पवित्रीकरण की क्रिया के बाद विष्णु पूजा के बाद प्रायश्चित के तौर पर गोदान किया। इसके बाद जहां मूर्ति निर्माण हुआ उस जगह पर कर्मकुटी होम किया। इस दिन वाल्मीकि रामायण व भुशुण्डिरामायण पाठ की भी शुरुआत हुई।

17 जनवरी, बुधवार
इस दिन जलयात्रा के साथ ब्राह्मण-बटुक- कुमारी-सुवासिनी पूजन हुआ। बटुक यानी बच्चे, कुमारी यानी दस साल से कम उम्र की बच्चियां और सुवासिनी यानी सुहागन महिलाओं की पूजा हुई। फिर कलश पूजन हुआ और कलश यात्रा हुई। इस दिन रामलला मूर्ति की शोभायात्रा हुई और आनंद रामायण का पाठ शुरू हुआ।

18 जनवरी, गुरुवार
इस दिन रामलला जहां विराजमान होंगे उस जगह की पूजा भी की गई। इसके बाद तीर्थ पूजन हुआ जिसमें गणेश-अंबिका और मंडलों की पूजा हुई। मंडप प्रवेश, यज्ञभूमि और वास्तुपूजन समेत अनुष्ठान में शामिल सभी जरूरी पूजा-पाठ हुए। इसके बाद मूर्ति का जलाधिवास, गन्धादिवास, पूजन और आरती हुई। जलाधिवास में मूर्ति को पानी और गंधादिवास में कई तरह की सुगंधित चीजों में रखा जाता है।

19 जनवरी, शुक्रवार
औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास और धान्याधिवास हुए। औषधाधिवास में मूर्ति को औषधियों में रखा जाता है। केसराधिवास यानी केसर में, घृताधिवास यानी मूर्ति को घी में और धान्याधिवास का मतलब मूर्ति को कई तरह के अनाजों में रखा जाता है। माना जाता है कि गढ़ाई के वक्त मूर्ति पर चोट होने पर लगने वाले दोष और अशुद्धियां इन अनुष्ठानों से दूर हो जाती हैं। इस दिन अरणि से प्रकट अग्नि की नवकुंडों में स्थापना हुई, फिर हवन, वेदपारायण, रामायणपारायण हुआ।

20 जनवरी, शनिवार
इस दिन मन्दिर के प्रांगण में 81 कलशों की स्थापना और पूजा हुई। इसके बाद सुबह शर्कराधिवास और फलाधिवास की क्रिया हुई। शर्कराधिवास में शक्कर और फलाधिवास में फलों के साथ मूर्ति को रखा गया। फिर शाम को पुष्पाधिवास की क्रिया हुई। इसमें कई तरह के सुगंधित फूलों में मूर्ति को रखा जाता है। माना जाता है, इन क्रियाओं से मूर्ति की पवित्रता और बढ़ जाती है।

21 जनवरी, रविवार
पहले टेंट, फिर अस्थायी मंदिर में विराजमान रही रामलला की पुरानी मूर्ति नए मंदिर में ले जाकर स्थापित की गई। इस दिन सुबह मध्याधिवास और शाम को शय्याधिवास हुआ। मध्याधिवास में मूर्ति को शहद के साथ रखा जाता है। शय्याधिवास में मूर्ति को शय्या पर लिटाया जाता है। इसे शयन परंपरा भी कहते हैं। शयन से पहले शाम की पूजा और आरती हुई।